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सामंत कुमार झा 'साहित्य'

Romance

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सामंत कुमार झा 'साहित्य'

Romance

मेरे मीत

मेरे मीत

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तुम मेरे मीत हो,

तुम ही प्रीत हो,

तुम ही छंद भी,

तुम ही गीत हो।


मेरा कहानी का,

व जिंदगानी का,

तुम मंजिल और,

तुम ही जीत हो।


तुम्हें ही चाहना,

तुम्हें ही बुलाना,

इस जीवन का,

तुम ही संगीत हो।


तुम से तुम तक,

न मुझे तो शक,

मुझे हर जगह,

तुम ही प्रतीत हो।


मैं और बस तुम,

हो जाए हम गुम,

तुम ही तो वर्षा,

तुम ऋतु शीत हो।



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