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Rajeev Rawat

Inspirational

4  

Rajeev Rawat

Inspirational

मेरे बाबा--दो शब्द

मेरे बाबा--दो शब्द

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कैसे तुम्हें 

लिखूं अलविदा बाबा 

भाग्य का तारा यूं टूटे न-

जीवन में 

आशिर्वाद, स्नेह का

यह बंधन सदियों तक छूटे न-


आंखे खोली बाहें तेरी

जीवन राग पढाती थीं-

एक एक कदमों पर देकर सहारा

चलना मुझे सिखाती थीं-


उन पलों को भूलूं कैसे 

जब भी कदम मेरे डगमगाते थे-

तुम आगे बढ़कर पापा 

 कदम कदम पर सहारा मेरा बन जाते थे-


एक एक 

पल उन यादों से ग्रंथ ही लिख जायेगा-

तेरे उस प्यार का 

कभी पापा ऋण नहीं चुक न पायेगा-


ऊपर से तो 

खोल नारियल सा

पर अंदर से कितने मीठे थे-

होठों से खामोशी ओढ़े 

पर पल पल हमारे लिए ही जीते थे-


खुद भींगे 

और हमें बचाया

न जानें कितनी बरसातों में--

मैंने अपने दर्द में रोते देखा तुमको 

छुप छूप कर सारी रातों में-


जरा चोट 

जो लगती मुझको 

तुम बच्चे बन जाते थे-

बार बार 

मेरे बालों को आकर के सहलाते थे--


खुद टूटी 

चप्पल सिलवाते

मेरे लिए नये जूते लाते-

अपने कपड़ो में छुपकर, लेकर सुई पैबंद लगाते-


रोज रात को 

काम से आकर अपने पहने कपड़े धोते थे-

पर मैं न 

शर्मिदा हूं स्कूल में मेरे लिए नये कपड़े होते थे-


नहीं जाना भगवान को मैंने

पर तुझ से बढ़ वह भी क्या होंगे-

क्या वह भी 

अपने बच्चों को भरपूर खिला कर

कर बहाना भूखे सोते होगें-


स्कूल मे खूब पढूं मै, 

जीवन में आगे बढूं मैं

 इसलिये हमें समझाते थे-

थे कितने मुलायम पर कठोर कभी बन जाते थे-


आज सोचता हूं

कई बार बात पर मैं झल्ला कर खोता अपना आपा था-

पर धैर्य - प्यार से समझाता वह शख्स हमारा बाबा था-


आज उम्र की दहलीज पर

उन संबधों का अर्थ समझ में पाता हूं-

जब पापा बन कर मैं अपना फर्ज निभाता हूं-


तुम तो हो बरगद की छाया-

तुमसे ही तो यह जीवन पाया-

तुमने तो फर्ज निभाया अपना, अब मैं भी फर्ज निभाऊंगा-

तुम अच्छे पापा बने मेरे

मैं भी बेटा बन कर दिखाऊंगा-


जीवन का 

अभिलेख लिखे जो 

 उस कलम की स्याही सूखे न--

कैसे तुम्हें 

लिखूं अलविदा बाबा 

भाग्य का तारा यूं टूटे न-

जीवन में 

आशिर्वाद, स्नेह का

यह बंधन सदियों तक छूटे न-

 


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