मेरे बाबा--दो शब्द
मेरे बाबा--दो शब्द
कैसे तुम्हें
लिखूं अलविदा बाबा
भाग्य का तारा यूं टूटे न-
जीवन में
आशिर्वाद, स्नेह का
यह बंधन सदियों तक छूटे न-
आंखे खोली बाहें तेरी
जीवन राग पढाती थीं-
एक एक कदमों पर देकर सहारा
चलना मुझे सिखाती थीं-
उन पलों को भूलूं कैसे
जब भी कदम मेरे डगमगाते थे-
तुम आगे बढ़कर पापा
कदम कदम पर सहारा मेरा बन जाते थे-
एक एक
पल उन यादों से ग्रंथ ही लिख जायेगा-
तेरे उस प्यार का
कभी पापा ऋण नहीं चुक न पायेगा-
ऊपर से तो
खोल नारियल सा
पर अंदर से कितने मीठे थे-
होठों से खामोशी ओढ़े
पर पल पल हमारे लिए ही जीते थे-
खुद भींगे
और हमें बचाया
न जानें कितनी बरसातों में--
मैंने अपने दर्द में रोते देखा तुमको
छुप छूप कर सारी रातों में-
जरा चोट
जो लगती मुझको
तुम बच्चे बन जाते थे-
बार बार
मेरे बालों को आकर के सहलाते थे--
खुद टूटी
चप्पल सिलवाते
मेरे लिए नये जूते लाते-
अपने कपड़ो में छुपकर, लेकर सुई पैबंद लगाते-
रोज रात को
काम से आकर अपने पहने कपड़े धोते थे-
पर मैं न
शर्मिदा हूं स्कूल में मेरे लिए नये कपड़े होते थे-
नहीं जाना भगवान को मैंने
पर तुझ से बढ़ वह भी क्या होंगे-
क्या वह भी
अपने बच्चों को भरपूर खिला कर
कर बहाना भूखे सोते होगें-
स्कूल मे खूब पढूं मै,
जीवन में आगे बढूं मैं
इसलिये हमें समझाते थे-
थे कितने मुलायम पर कठोर कभी बन जाते थे-
आज सोचता हूं
कई बार बात पर मैं झल्ला कर खोता अपना आपा था-
पर धैर्य - प्यार से समझाता वह शख्स हमारा बाबा था-
आज उम्र की दहलीज पर
उन संबधों का अर्थ समझ में पाता हूं-
जब पापा बन कर मैं अपना फर्ज निभाता हूं-
तुम तो हो बरगद की छाया-
तुमसे ही तो यह जीवन पाया-
तुमने तो फर्ज निभाया अपना, अब मैं भी फर्ज निभाऊंगा-
तुम अच्छे पापा बने मेरे
मैं भी बेटा बन कर दिखाऊंगा-
जीवन का
अभिलेख लिखे जो
उस कलम की स्याही सूखे न--
कैसे तुम्हें
लिखूं अलविदा बाबा
भाग्य का तारा यूं टूटे न-
जीवन में
आशिर्वाद, स्नेह का
यह बंधन सदियों तक छूटे न-
