मेरे अंदर की चिड़िया
मेरे अंदर की चिड़िया
मेरे अंदर की बैठी प्यारी छोटी सी गौरैया.....
कभी-कभी जोर जोर से चहचहाने लगती है.....
पंख फड़फड़ाती है उड़ने को.....
दूर गगन की सैर करने को.....
पर फिर सहम कर चुप हो बैठ जाती है.....
दूर तक फैली हरियाली सूख गई है.....
गगन भी अब निःशब्द नहीं रहा.....
पैरों तले बैठे लोग ढूंढ रहे हैं मुझे .....
खामोश हो गई हूं मैं.....
ढूंढती हूं एक आशियाना.....
दरख़्तों पर, घरों में, छतों पर .....
नहीं मिलता वह कोना ......
निकल जाऊं जहां....
गाऊँ किसी पुरानी धुन को....
चहचहा कर गुंजा दूँ आसमां को.....
ढूंढ कर थक गई हूं .....
वापस बिन बोले छिपकर ....
सहन कर बैठ जाती हूं.....
इंतजार बस इंतजार उस पल का ......
आतुर व्योम के बुलाने का......
हरियाली को छू लेने का ......
दरख़्तों पर आशियां बनाने का....
खुश होकर कोई गीत गुनगुनाने का.....
