STORYMIRROR

Shivangi Dubey

Drama Tragedy

2  

Shivangi Dubey

Drama Tragedy

मेरे आधे दिन की ज़िंदगी

मेरे आधे दिन की ज़िंदगी

1 min
14.3K


मेरे आधे दिन की ज़िंदगी,

सोचा था पूरे कर लूँगी अधूरे सपनों को।


मिटा दूँगी दूरिय़ांँ, मिला दूँगी मेरे अपनों को,

पर अचानक डोर छूटती नज़र आ रही है,

लग रहा है जैसे मौत मेरे और क़रीब आ रही है।


करना था खड़ा अपने सपनों के महल को,

खिलाना था मुझे अरमानों के कमल को,

लेकिन पांव तले धरती खिसक रही है।


सिर से आसमान उठ रहा है,

मेरे आधे दिन की ज़िंदगी,जैसे पूरी होने चली है।


क्या-क्या करूँ मैं इस आधे का,

अब तक सब आधा ही तो पाया है।


अधूरी ममता, मेरा आधा बचपन,

अधफ़टे वो कपड़े, वो आधी रोटी।


अधूरे वो रिश्ते, जो लगते थे पूरे,

न पूछो मेरे आधे दिन का क्या ग़म है,

जो मिला शायद वो कम है।


अब क्या करूँ इस आधे दिन का,

आधा नहीं कम, समझा दिया इस मन को।


रूको दोस्तो, ज़रा समेट लूँ,

मैं अपने इस आधे दिन को।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama