मेरा वजूद
मेरा वजूद
ढूंढती ही रह गई मैं
अपने वजूद को
अटक गई लेकिन
परिभाषा पर
क्या मेरी पैदाइश
करेगी इसे निश्चित
या मेरा रंग रूप
या मेरा नाक नक्श
मेरा अध्ययन
या मेरी डिग्रियां
मेरा आध्यात्म
या मेरा अहंकार
मेरा अहंकार
या मेरा आत्मविश्वास
मेरी संवेदनशीलता
या मेरा घमण्ड
मेरा धर्म, मेरी जाति,
मेरा पूजा पाठ
मेरी आस्तिकता
या नास्तिकता
क्या है आधार
मेरे मूल्यांकन का?
मेरा आलीशान मकान
मेरा भरा पूरा परिवार?
किस नाप तोल में
पड़ गए हम
कैसी है यह
विश्वास प्रणाली
क्यों झुठलाते हैं
अपने वजूद को हर पल
हल्के-फुल्के, निराधार
पैमानों की ओट में ?
मेरे लिए वजूद का वजूद
टिका है मेरे अशाश्वत,
नश्वर शरीर के अन्दर बसते
प्राणों के स्पंदन पर
जब तक बसे मुझ में प्राण
तब तक उन की
गरिमा ही मेरा वजूद
मेरा गौरव, मेरा अभिमान
परिभाषा तो मिलने से रही
पर हर इन्सान में बसे
उस वजूद को दे पाऊं
वह आदर और सम्मान
इन्सानों के मूल्यांकन के लिए
ढूंढें नहीं निरर्थक आयाम
न रूह का आकार, न वजूद का
दोनों ही पर्याय, आदर के हक़दार।