Devender Kumar sharma

Romance

3.7  

Devender Kumar sharma

Romance

मेरा तुम्हारा प्यार

मेरा तुम्हारा प्यार

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मेरा तुम्हारा प्यार इतना सात्विक नहीं

जिसे मैं राधा-कृष्ण का नाम दे सकूं ?

यह कह सकूं पार्वती की साधना,

या शिव किए कांगना,

या चांद की उपमा,

इन सबके बीच में कुछ छूट जाता है!

सब कुछ कहने पर भी,

कोई रूठ जाता है।


लेकिन जब - जब सांसें भरती हैं,

तो तेरी स्मृति मुझमें और मेरी स्मृतियां तुझमें,

अकुलाने लगती हैं,

क्योंकि जिजीविषा का प्रेम!

रेस्टोरेंट की टेबल पर रखे,

बिल देते ही,

खत्म हो जाता है।


और नया सफर हम सफर,

मैं कहीं खो जाता है।

इसलिए कहता हूं

मेरा तुम्हारा प्यार सात्विक नहीं,

जिसे मैं राधा-कृष्ण का नाम दे सकूं।


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