सभ्यता का तिरस्कार
सभ्यता का तिरस्कार
बनती बिगड़ते साए में,
तो कुछ अनकही कहे
अनु, परमाणु में
मैंने सभ्यता छोड़ते देखा है ।
टीचर के संस्कार,
मां का प्यार,
स्कूल की घंटी को,
बदलते देखी है ।
मैंने लोगों को सभ्यता छोड़ते देखा है !
कलम के सिपाही,
देख्ता लिखने से कतराते हैं।
नमस्कार, राम - राम कहने से कतराते हैं
खादी, स्वतंत्रता नकार, ब्रांडेड पहन इतराते हैं
मैंने लोगों को सभ्यता छोड़ते देखा है।
छोटू पापा कहने में कतराता है,
रिंकी मोम कहने में गर्व फरमाती है,
सामाजिक अवधारणा धूमिल हुई,
मॉडर्निटी, पोर्ट्स मॉडर्निटी हुई,
इन सबके बीच ;
मैंने लोगों को सभ्यता छोड़ते देखा है !
स्कूल विद्यालय ना रहे, व्यापार बन गए
हिंदी कमरे में, क्रंदन करती है
सॉरी, प्लीज, सुनकर अपना अस्तित्व ढूंढती है
इन सब के बदलाव में,
मैंने कुछ लोगों को सभ्यता छोड़ते देखा है !