मेरा सपना
मेरा सपना
चलो अब लौट चलें
वही नदिया,वही उपवन,
वही प्रकृति,
जहाँ पुलकित हो तन मन,
चले कुछ निज प्रकृति में,
प्रेम ही वृत्ति में,
भुला कर हर दूरी अब,
जिये एकात्म की वृत्ति में,
बस देना ही देना है,
न यहाँ से कुछ लेना है,
सजा कर वसुधा को,
सिख कुछ आत्मज्ञान को,
बस चले ही जाना है,
बना कर कुछ पदचिन्ह
बस गढ़ते जाना है,
आने वाली पीढ़ियों को,
वसुधा के निर्माण के लिए,
बस यही है मर्म कुछ जीवन का,
बस देना और देना,
प्रेम ,करुणा,सौहार्द लुटाना,
सबको कुछ अपना बनाना,
वरना रह तो जाना है
धरा पे सब धरा,
हमे तो केवल जाना है,
अपने आश्रय स्थल,
बस प्रियतम के घर,
यो मुस्कुरा कर, स्वीकार कर,
हर परिस्थिति,
क्यो न बस बढे
कर्तव्य पथ पर,
जगमगाने वसुंधरा,
हरने जन जन की पीड़ा।।
