मेरा प्रकाश
मेरा प्रकाश


वो जो एक प्रकाश
पथ प्रशस्त करता है मेरा
छू लेती हूँ जिसे मैं
ऊँचे अनंत आकाश में उड़ते
अँधेरों में राह भटकते
आशा-निराशा के सागर में
डूबते-उतरते
वो प्रकाश है चिन्मय जो
मेरा होकर भी है सबका जो
सूर्य, चन्द्र, अभ्र और तारों की तरह
है शाश्वत और अनंत जो
है अच्युत और अद्भुत जो
कैसे दिखालाऊँ ए “लकी” मैं उसे
महसूसती हूँ हर पल मैं जिसे
अदृश्य अखंड प्रकाश वो
सृष्टि के कण-कण में
है व्याप्त जो
है साकार और निराकार जो
सत् चित आनन्दमय मेरा प्रकाश वो