मेरा परिवार
मेरा परिवार
जब टूटा वो सपना मेरा
मानो पूरी तरह बिखर गई
जब ज़िंदगी से नफरत होने लगी
माँ की गोद में फिरसे जन्नत मिल गई !
जब बाहर किसी ने गंदी नज़र डाली
घर आकर खूब रोई
गले से लगाकर खूब हँसाया
उस पिता ने मुझे हर कदम पर लड़ना सिखाया !
मूँह पर तारीफ़ कहाँ करता है
मेरा नटखट भाई , बात बात पर मुझसे लड़ता है !
कहने को सिर्फ बहन थी जो मेरी
पर सारे राज़ जिसमे समाए थे
वो वही किताब थी मेरी !!
ऐसा परिवार देने के लिए , खुदा मै शुक्रगुज़ार हूँ तेरी !