मेरा पंछी
मेरा पंछी
जानती हूँ मैं कि
मेरा पंछी कभी नहीं भर पाएगा
ये ऊँची उड़ान।
ना उठ पाएगा
ज़मीन से ऊपर
पंख फड़फड़ाकर।
उड़ान क्या
उसे तो ज़मीन पर खड़े होने को भी
सहारा चाहिए।
क्योंकि क़ुदरत ने
छीन लिए हैं उसके पंख,
कमज़ोर पड़ गए हैं उसके पाँव।
नहीं चमकेगा
मेरा सितारा फलक पर तो क्या,
मैं फिर भी रखूँगी
उस पर अपनी ममता की छाँव।
मैं वो नहीं जो लाद दूँ
अपने अरमानों की गठरी,
अपने राजकुमार पर।
मैं तो वो हूँ
जो साया बन रहती हूँ
हर पल उसके साथ।
और धीरे धीरे
अपनी और सरका लेती हूँ
उसके दर्द का गट्ठर।
क्योंकि जानती हूँ
मैं, मेरा पंछी,
उड़ान नहीं भरेगा।
भरपूर जी लूँ मैं
उसके साथ
अपने जीवन का हर पल।
क्यों सोचूँ मैं, क्या होगा
और क्या न होगा
आने वाले कल।
क्योंकि जानती हूँ
मैं मेरा पंछी
उड़ान नहीं भरेगा।
मैं माँ हूँ
जीवन उसको देने वाली
जानती हूँ मेरा बेटा,
आम नहीं ख़ास है।
सहेजती हूँ हर पल को,
जो संग होने का अहसास है,
मेरे जीवन में चमका है
मेरा सितारा है वो।
मैं पी लूँ उसके ग़म
मुझे जान से प्यारा है वो,
मेरा सितारा है वो....