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Minal Aggarwal

Tragedy

4  

Minal Aggarwal

Tragedy

मेरा गांव तेरा शहर

मेरा गांव तेरा शहर

1 min
440


मेरा छोटा सा गांव 

वहां मेरा छोटा सा घर 

चारों तरफ फैली हरियाली और 

पास ही बहती एक नील नदी प्यारी 

आसमान भी नीला 

शुद्ध हवाओं का मेरे गांव के 

आसमान पर पहरा 

प्रकृति का सुनाई पड़ता 

कानों को यहां संगीत 

मेरा मन भी गाता 

इसके कानों में जैसे 

हौले हौले कोई प्रीत का गीत 

यहां की छटा सुहानी है 

काम के लिए आना पड़ता 

तेरे शहर 

उसकी शक्ल तो 

दिन पर दिन बदलती जा 

रही 

काला पड़ता जा रहा 

धुएं के गुबार से भरा 

लगता एक राक्षस भीमकाय से 

शरीर का पर 

चेहरे से बदशक्ल 

गगनचुंबी यहां इमारतें 

समुंदर का भी है खारा जल 

खुली हवा में सांस नहीं आती 

दम घुटता है 

कमरे में रहो बंद कि खोलो 

पल भर को खिड़की 

यह रहती दुविधा 

नहीं मिलता इस समस्या का कोई 

हल 

भीड़ है पर 

अकेलापन है 

वीरानगी है 

प्यार की यहां कमी है 

आदमी बन गया हो जैसे 

कोई मशीन बस 

पैसा कमाने की एक होड़ सी 

लगी है 

सुबह को ही सांझ सा मंजर 

लगने लगता है 

यहां सूरज उगने से पहले ही 

जैसे डूबने लगता है 

यह समुंदर इस शहर के 

साथ साथ 

मुझे भी ले डूबेगा 

कहां जाऊं सिर छिपाने को कि 

आसमान भी काला और 

धुएं से भरा धुंधला दिखता है।


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