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Kusum Joshi

Abstract

3  

Kusum Joshi

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मेरा अक़्स

मेरा अक़्स

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आईने में मुझको मेरा,

अक़्स ही नहीं दिखता,

जिसे मैं अपना कहती थी,

कोई ऐसा शख़्स नहीं दिखता,


दर्द तो जीवन में मेरे भी हैं,

पर घाव कहीं नहीं दिखता,

लबों से हंसता है जीवन मेरा

पर दिल का दर्द नहीं दिखता,


कसक अब इस बात की है,

कि साए साथ नहीं चलते,

राहों में अकेले चल भी लें,

पर मंज़िल में साथी नहीं दिखता,


आईने में मुझको मेरा,

अक़्स ही नहीं दिखता,

जिसे मैं अपना कहती थी,

कोई ऐसा शख़्स नहीं दिखता,


हम रोते भी हैं पर आंखों से,

आंसू एक नहीं गिरता,

देख आंखों को ही जो पढ़ ले मन,

वो साथी कहीं नहीं मिलता,


हर मुस्कुराहट के पीछे एक ,

खोई उदासी रहती है,

पर दुनिया में आज किसी को भी,

वो उदास मन नहीं दिखता,


आईने में मुझको मेरा,

अक़्स ही नहीं दिखता,

जिसे मैं अपना कहती थी,

कोई ऐसा शख़्स नहीं दिखता।



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