में भीड़ हूं !
में भीड़ हूं !
कुल्लड़ चेहरे, है कितने गहरे, ना ये ठहरे
आपा धापी में, आठों पहरे, भटके बहरे
ये भीड़ हैं।
आंखें खोले, सपने जोड़े, हम भी दौड़े,
मन के नैना, मूंदे रखना,
और कुछ ना कहना
ये भीड़ हैं।
कल फिर, कल फिर, कब आयेगा
बीतेगा पल पल, फिर थम जायेगा
खरच हो रहा, तू इन किस्सों में
मरेगा भी बेशक, तू तो किश्तों में
ये भीड़ हैं।
ना भावी, ना आज है, ये काली रात है
अपने ही साए, अपनी चीखें निभाए साथ है
कब तक कब तक कब तक चिललायेंगा
तू कैदी में कैदी, यहां ना कोई आजाद है
ये भीड़ हैं।
बंदिशे हमें, कहा बर्दाश्त है
सच झूठ का तो, बुना आकाश है
राम रावण अपने हिसाब से बदले
वो आगे, जो काम लागे, यही सारांश है
शतुरमुर्ग के सगे है,
'अंकित' कोई किसी का ना चेला है
एक मेला है, पर साला भीतर
हर कोई अकेला है !
मैं भीड़ हूं, तू भीड़ है !
