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Mayank Kumar

Abstract

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Mayank Kumar

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मेघ तुम बरसो

मेघ तुम बरसो

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मेघ, झूमो आज खूब तुम

तुम्हारा बेरा फिर आया है

आंधी भी खूब चली,

बिजली भी चमकी है


अब तो बरसना तुम,

वसुधा खूब झुलसी है

चांद भी छुप गया,

उसकी व्याकुलता से


अब न सताना तुम,

धरा को तृप्ति दो !

कामदेव तरसे हैं,

उनको भी मस्ती दो


अब न डरना तुम,

वैसे आलोचक से

जिसने तेरा सब लिया,

दिया बस आंसू है


अब न बंधना तुम,

घिसी पिटी रिवाजों से !


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