मधुर स्मृति
मधुर स्मृति


फिर वही मधुर स्मृति है प्रकृति की उपजाई सी
इक सुबह अनछुई शरमाई सी..सकुचाई सी।
प्रेममय वृष्टि से ओतप्रोत सब हैं
एक मैं...प्रियवर...और वही पुरवाई सी।
छा गए गगन में घन उतावले मनभावने
और मैं पहली अचख इन बादलों से आई सी।
गूंज ना कर ओ भ्रमर अब रहने दे तू थम जरा
उड़ गई धानी चुनर घबराई सी..सकुचाई सी।