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Subhadeep Bandyopadhyay

Abstract

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Subhadeep Bandyopadhyay

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मौत से पहले

मौत से पहले

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शायद रात के ढलने का समय हो चला ,

नम आंखें होसियार मेरे कूच का वक़्त हो चला , 

जिस ज़िन्दगी की फेरिस्त बनाने में सारी उम्र गुज़ार दी ,

आज उस पन्ने को फाड़ने का वक़्त हो चला ,

पीछे नहीं थे रोने वाले ,आगे कंधो की जरूरत नहीं ,

हम आए थे अपने पैरो पर इस जहाँ में ,

अपनी मौत खुद चुनने का वक़्त हो चला ,

न सबक किसी को देना है ,न कुछ और सीखना है ,

बहुत हो चुकी दुनियादारी अब कुछ नहीं निभाना है ,

बस एक बार अगर फिर से मुड़ सकूं ,तो वही काटें चुभोना है ,

दर्द में बड़ा सुकून है बस यही समझाना है ,

गिन गिन के साल जिया ,अब गिनती भूल चूका हु मैं 

मेरी कूच का वक़्त हो चला ,अलविदा कहना भी फ़िज़ूल है. 


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