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Subhadeep Bandyopadhyay

Others

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Subhadeep Bandyopadhyay

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शुभरात्रि

शुभरात्रि

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दुआ ए रात (शुभरात्रि)


सुनती हो तो सुनाता हूँ इस रात की दास्ताँ,

मिलाता हूँ सितारों से, यह कहता है आसमां,

अंत की आहट है या ज़िन्दगी का सलाम है? 

फ़िज़ा में गुल नहीं मगर, यह वक़्त खुशनसीब है

सुनती हो तो सुनो इन सपनों की मदहोशियाँ,

चलने को है काफिला, फिर कब होंगी यह बात यहाँ ?

सदियों के इंतज़ार में मैं तुमसे यूँ मिला,

रात तुम्हारी खुशगवार, मेरी रूह ने यूँ कहा ,

शायद सच के रूबरू, मेरे यह अलफ़ाज़ हैं ,

इश्क़ के निशान है यह या हम तुम पे जाँ निसार हैं ?


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