कोरे पन्ने
कोरे पन्ने
मुझ पे फिर बरस जाओ बादल,
इस आग की दवा मुझे मिली नहीं.
आसमानों की ख़ाक छान ली हमने,
अंजुम की रौशनी मुझे दिखी नहीं .
कुछ पन्ने कोरे से थे,लफ्ज़ बेजुबान से थे,
रात की आहट से अनजान से थे ,
इबादत में रखा उनको जो छोड़ गए मुझको,
पाक वक़्त ने वो मंज़र भी दिखाया मुझको ,
शीशा खंजर बन दिल में उतर आया ,
एक लम्हा यूँ ही गुनगुनाया,
मैं जागा रात भर सहर के इंतज़ार में,
मिला वो जो मुक्कद्दर में था,
पर वो न मिला जो मुक्कद्दर में था नहीं।