मौसम की मार
मौसम की मार
बर्फ की तरह ठंडी
सफेद चादर
सलीके से बिछे
मुद्दत हो गयी
सिरहाने पर बूँदे
आँखों से
गिर-गिर सूख गयीं
और
अपने निशाँ छोड़ गयीं
ठंडी हवा के झोंके से
दरवाज़ा खिड़की का
खुल सा गया
सिरहन सी दौड़ गयी
तन-मन में
और
हाथ दूजे सिरहाने
छू गया
मौसम की मार कहूँ, या
रंग प्यार का चढ़ गया
आज सिलवटें पड़ गयीं
चद्दर पर
ठंडी बर्फ पिघल गयी
मुद्दत बाद
भीनी-भीनी महक से उसकी
रूह मेरी पिघल गयी।