तब्दीली
तब्दीली
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जमीं...क्यूँ हो
रंगे लाल
जब दोनों में
बहता
एक ही रंग।
दर्दे सिरहन भी एक जैसी
शोर और चीख भी एक
अश्के रंग भी
अपना
एक जैसा
दुःख सुख भी
तेरा मेरा
एक।
क्यूँ न गले
मिल जाएँ
एक दूजे से हम
नाराजगियाँ
हो जाएँ दूर
दिल में कोई शिकवे न हों
जिंदगी में
आ जाए सकून।
रंग प्यार के बहुरंगी
पीला-नीला-लाल गुलाल
आ खेलें इन
रंगों से
जब
मेरी भी
माटी यही
और
तू भी इसी माटी
का लाल।