आहट सी है
आहट सी है
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सूखी डाली में उन्माद जगा फिर
नयी कपोलें फूट गयीं
भूरी-भूरी पत्तियां सारी
धम-धम जमीं पर गिर पड़ीं
हरी कपोलें यूं इतरातीं
इठरातीं मुँह खोले खड़ीं
ओस पड़ रही मुँह पर इनके
बनाव-श्रृंगार ये कर रहीं
नया जीवन - नया रंग
नये यौवन में झूम रहीं
चटक रंगों से सज-धज गया सब
चहूँ ओर श्रृंगार और
भीना इत्र-अबीर
आहट सी है
आने के उसकी
चौखट सारी सज गयीं
उमंग-तरंग से
भरा नवजीवन
अंगड़ाई नखरे कर रही
अठखेली और उल्लास से
करता स्वागत
ये सम्पूर्ण संसार
जय हो, जय हो,
पधारे हैं घर मोहे ऋतुराज।