मौका...
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मुमकिन नहीं
नदी के किनारों का मिलना
तो क्या
साथ बहते
जाने से किसने रोका है…
मंजिल तक साथ नहीं
तो क्या
सफ़र का साथ
तय करने से
किसने टोका है…
गैर इरादतन ही साथ
चल पड़े हैं
तो क्या
निभा लो ज़नाब
यकीनन यही मौका है…