मैंने सोचा पहली दफ़ा
मैंने सोचा पहली दफ़ा
उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए
मैंने सोचा पहली दफा
हाथ इतने
ठंडे भी हो सकते है
जबकि मौसम लिए हुए था
रौद्र उष्णता........
मेरा विचलित होना
नाजायज भी नहीं था
जबकि उसके हाथ
और मौसम में जायज
विरोधाभास था
और मेरे हाथ
बिल्कुल बेदम थे
जरा सी भी नमी देने में...
यह मेरे लिए
उतनी बड़ी
बात भी न थी
जो सालती रहती मुझे
जिंदगी भर.....
क्योंकि तुम्हारी आत्मा
कभी नहीं थी
ठंडे हाथों की तरह
बेजान और ठंडी।।