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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Inspirational

4.9  

राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Inspirational

मैं वह अमर गीत बन जाऊँ

मैं वह अमर गीत बन जाऊँ

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जिसको पीकर सीप तृप्त हो,  मैं वह एक बूँद बन जाऊँ ।

उस सागर सा होना क्या जो, प्यास किसी की बुझा न पाये ।।


ये तो सच है सबके मन में,  इच्छा एक पला करती है ।

परिवर्तन की आग सभी के,भीतर कहीं जला करती है।

बुझते मन को ज्योतित कर दे, मै वह प्रणय दीप बन जाऊँ ।

उस मशाल सा भी क्या जलना, लक्ष्य पूर्व ही जो बुझ जाये...।।


स्वर्ग नर्क के कई कथानक , यों तो सभी पढ़ा करते हैं ।

जिन्हें देखकर लोग सुखों के, सुन्दर स्वप्न गढ़ा करते हैं ।

देख सके जो जीवन दर्शन, मैं वह दिव्य दृष्टि बन जाऊँ ।

ऐसे नयन भला क्या होना जिनमें जीवन नज़र न आये ।।


खिलना, मुरझाकर गिर जाना, यह फूलों की प्रकृति रही है ।

किन्तु शाश्वत सत्य जान कर, व्याकुलता भी नहीं सही है ।

जिसको गाकर झूमे अंतस, मैं वह अमर गीत बन जाऊँ...

ऐसा गीत भला क्या होना, पल-दो पल जो मन बहलाये...।।

 


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