मैं उलझन हूँ तभी तो हूँ
मैं उलझन हूँ तभी तो हूँ
मैं उलझन हूँ तभी तो हूँ
मैं सुलझ कर क्या करूँगी
मैं जिंदगी हूँ, तेरी बदल कर क्या करूँगी !
अगर सुलझ गयी तो तुम उलझ जाओगे,
कई हालातों के दलदल में धंसते जाओगे।
अच्छा यही होगा कि- तुम सुलझे रहो।
मैं तुम्हारी उलझनों को थाम लेती हूँ।
तेरी जिंदगी हूँ न मैं,
फिर भला मैं कैसे ख़ुद को सुलझा सकती हूँ !!