मैं सिपाही देश का
मैं सिपाही देश का
मैं सिपाही देश का, सरहद पे मर-मिटूँ।
मादरे वतन पे अपनी, जाँ निशाँ करुँ।।
घर में मेरी बूढी माँ, चरणों को चूम लूँ,
ममता के छाँवों को, ज़रा सा मैं ओढ लूँ।
इकबार मुहब्बत को महसूस तो कर लूँ।
जननी-जन्मभूमि से आशीष तो ले लूँ।।
मैं सिपाही देश का--------।।1।।
आकाश तुल्य हैं पिता, नमन उन्हें करूँ।
सौंगध मुझे माटी की, तिलक ज़रा करूँ।
धर्म-जाति से भी पहले, देश पर मिटूँ।
लिपटी हो तिरंगे में लाश, गर्व मैं करुँ।।
मैं सिपाही देश का--------।।2।।
संगिनी है जिन्दगी की, मैं उसे जियूँ।
हाथों की वो नरमियां, स्पर्श तो करुँ।
कंगनों के उन सुरों को, याद तो करुँ।
आऊँ या न आऊँ तो, मरकर तुझे जियूँ।।
मैं सिपाही देश का--------।।3।।
मेंहदी मिटी नहीं है, उसको निहार लूँ।
हल्दी खिली-खिली है, चंदन की महक लूँ
तेरे लिए ही गुलशन में, फूल- बन खिलूँ।
जब तक है सांस मुझमें, बस यूँ डटा रहूँ।
मैं सिपाही देश का--------।।4।।
नन्हें से बच्चे अपने, उनपे निहाल हूँ।
ऐसा लगे कि जैसे, जन्नत निहार लूँ।
हर रुत लगे सुहानी, तन-मन लगा सकूँ।
मैं दूर तुमसे रहकर, वतन पे मर सकूँ।।
मैं सिपाही सरहद का-----।।5।।
अंतिम सफर केवास्ते, कुछ कामकर सकूँ
मैं रहूँ या ना रहूँ, कुछ नाम कर सकूँ।
हर बार जन्म लेकर, सौ बार मर सकूँ।।
जन-गण तेरे लिए मैं, शहीद हो सकूँ।।
मैं सिपाही देश का....