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वक्त गया तो हाथ नहीं फिर आएगा

वक्त गया तो हाथ नहीं फिर आएगा

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कविता

वक्त गया तो हाथ नहीं फिरर आएगा

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कद्र वक़्त की कर ले, मौज़ उड़ाएगा ।

वक्त गया तो हाथ, नहीं फिर आएगा।।

*

कल कर लेगा, ऐसी कसमें खाए मत,

नाहक तू, अपने को यूँ बहलाए मत।

बचपन बदल गया है, आज जवानी में ,

कल होगा बूढ़ा,अशक्त इठलाए मत।।

देह पिंजरे की, अपनी सीमाएं हैं,

प्राणों का पंछी, एक दिन उड़ जाएगा।

वक्त गया तो, हाथ नहीं फिर आएगा।।

*

कल जैसा भी बीत गया, क्यों सोचें हम,

कल कैसा होगा, क्यों पाले उसका ग़म।

दोनों कल पर ज़ोर, नहीं है जब अपना,

क्यों न जीवन आज बनाएं , हम अनुपम।। 

चारागर की हमदर्दी, हो कितनी ही,

चूक गया जो तेल, दीप बुझ जाएगा ।

वक्त गया , हाथ नहीं फिर आएगा।।

*

बीता कल तो, हमे बहुत सिखलाता है,

जो ना सीखे उससे, वो पछताता है।

लेकिन आज, आज है उसको ना भूलें,

क्योंकि अपने कल को ये उजलाता है।।

लेकिन वो उजला कल क्या भोगोगे हम,

ौन यहाँ इसका अनुमान लगाएगा।

वक्त गया तो हाथ नहीं फिर आएगा।।

*

जो है परे उसी से, नेह लगाते हैं,

स्वर्ग यहां दुनिया में, लोग बनाते हैं।

लेकिन दरवाज़े में, घुसने से पहले,

लेकर लंबा मौन, यहाँ सो जाते हैं।।

सत्ताधीश अकेला ही है दुनिया में,

सत्ता में क्या दखल, उसे ये भाएगा।

वक्त गया तो, हाथ नहीं फिर आएगा।।

*

जीवन तीन खंड की एक इमारत है,

कल आज और कल में बंटी हुई छत है।

मगर तीसरी छत के बारे में कहते,

पढ़ी जाए ऐसी लिखी इबारत है।।

रब से नाता रखने वाले पार गये,

निर्मोही ये समय सदा कहलाएगा।

वक्त गया तो, हाथ नहीं फिर आता है।।

*

अपनी संपत्ति अपने काम न आए तो,

किस मतलब की झगड़े अगर कराए तो।

जो हमने उपयोग किया वो अपना है ,

हमे कोई ये सच्चाई समझाए तो।।

"अनंत" अपना आज संवारे माने हम,

माया ममता बोझा है, बहकाएगा।

वक्त गया तो हाथ नहीं फिर आएगा।।

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अख्तर अली शाह "अनंत"नीमच


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