मैं रोज़ ख़्वाब नये जीता हूँ
मैं रोज़ ख़्वाब नये जीता हूँ
मैं रोज़ ख़्वाब नए जीता हूँ,
न ग़मों की फिक्र होती है,
न खुशी की आस सँजोता हूँ,
मैं रोज़ ख़्वाब नए जीता हूँ ।
सुबह की झपकी में खोकर के,
अपनी आँखें भिगोता हूँ,
नई किरणों को ओढ़ के,
मैं हवाओं में सोता हूँ,
न कल की फ़िक्र होती है,
न आज की चिंता में रोता हूँ,
मैं रोज़ ख़्वाब नए जीता हूँ।
घुटन कभी बाधा नहीं होती,
तन कभी प्यादा नहीं होती,
मैं खुद को वज़ीर मान के,
चाल जब मन चाहा चल देता हूँ,
मैं रोज़ ख़्वाब नए जीता हूँ ।
आज मैं खोना नहीं चाहता,
कल भी रोना नहीं चाहता,
यूँ कल-कल की चिंता में,
कौन ख़ुश होना नहीं चाहता,
नये आस में रम कर के,
जब काज़ अनोखा कर देता हूँ ,
मैं रोज़ ख़्वाब नए जीता हूँ ।।