मैं राम पर लिखूं
मैं राम पर लिखूं
मैं राम पर लिखूं?
मैं राम पर लिखूं इतनी मुझमें सामर्थ्य कहां?
सृजनहार का किस प्रकार शब्द सृजन करूं,
इतनी मुझमें भावार्थ कहां?
क्रीड़ामय युगल क्रोंच के विरह की करुणा से उपजी ,
वाल्मीकि के कंठ से प्रस्फुटित
यह राम- सिया की करुण कहानी
है।
सबके अपने-अपने राम हैं, सबकी अपनी - अपनी जुबानी है।
मेरी लेखनी में इतनी सामर्थ्य कहां जो राम का चरित्र गढ पाये?
मेरी वाणी में इतना उद्गार नहीं, जो राम की विशालता पढ पाये?
राम कोई भगवान नहीं, ना कोई दिव्य संतान हैं !
वन - वन विचरण करने वाले राम, मानवता के वरदान हैं।
राम एक सामान्य नर होकर भी शुचिता के प्रतिष्ठान हैं ।
भारतीय सनातन परंपरा के राम अन्ततर अनुसंधान हैं।
राम समस्त चर - अचर के पालक हैं,
राम सृष्टि के संचालक हैं।
राम करुणा, त्याग के प्रतिमूर्ति हैं,
राम प्रेम, सद्भाव , समरसता के परिपूर्ति हैं,
राम कर्ता हैं ,धर्ता हैं
राम सृष्टि के सुन्दर समाहर्ता हैं।क्रमशः ~
पर बिन सीता, राम सबकुछ होकर भी कुछ नहीं !
सीता के संग ही राम सबके अंतेवासी हैं।
राम युगों- युगों से मानवता के अभिलाषी हैं ।
राम आदि हैं, अनंत हैं
राम दिशा भी हैं और दिगन्त हैं।
राम समरसता के नायक हैं,
राम ऐसी धुन हैं, जो सबके कंठों से गाने लायक हैं।
राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।
राम मूर्त हैं, अमूर्त हैं
राम कर्तव्य निष्ठा के अद्भुत प्रति मूर्त हैं।
राम किसी काल, धारा, पंथ संप्रदाय , सरहद में बंधे नहीं!
राम सबके अपने अपने हैं,
राम सच्चे युगप्रवर्तक हैं, राम सचमुच इतने सच्चे हैं।
कबीर के राम निर्गुण और निराकार हैं,
तो तुलसी के राम सगुण हैं वो विष्णु के अवतार हैं।
राम मिथिला के मिठास हैं,
राम अवधपुरी के उल्लास हैं!
राम सबरी के जूठे बेर हैं ,
राम केवट के नौका विहार हैं।
राम अहिल्या के उध्दार हैं,
राम राजा दशरथ के पुकार हैं।
राम ऋषि मुनि के तप हैं ,
राम कौशल्या की तपस्या हैं !
राम भरत के त्याग हैं , तो लक्ष्मण के प्रयाग हैं,
राम, लक्ष्मण संग- संग उर्मिला के अन्तर के विरह व्याग हैं !
राम केकैयी के वचनों से नव निर्मित प्रसाद हैं।
राम पवनपुत्र के हृदय में सीता संग अंतरनाद हैं।
राम समरसता के नायक हैं,
राम पारदर्शी, पारावर हैं।
मैं पुनः स्वीकार करूं, मैं राम पर लिखूं इतनी मुझमें सामर्थ्य कहां?
जितना मैं अपने राम को समझ
प्रस्तुत है मेरी भावार्थ यहां....।।
~ BRIJLALA ROHAN