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Rashmi Lata Mishra

Abstract

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Rashmi Lata Mishra

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मैं नदी हूँ

मैं नदी हूँ

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पवित्र -अपवित्र, गंगा-यमुना,

मैं ही सरस्वती

जी हां मैं हूं नदी।


गिरिराज हिमालय या

अरावली से बहूँ,

क्या फर्क है दिशा कोई चलूं।


मुझे तो अपनी राह,

स्वयं बनानी है।

धरा की चुनर भी,

रंगनी धानी है।


सारे जग की क्षुधा मिटानी है,

बंध्या पूतों वाली बनानी है।

जब कल्याण हेतु जन्मी हूं मैं,

अपनी भूमिका बखूबी निभानी है।


आंचल में अपने अलग दुनिया समेटे,

 बढ़ती हूं आगे दुख-सुख लपेटे।

सीने पर जहाजों का बोझ लादा हो,


या फिर नौकाओं की चलें पतवारें,

रहता उद्देश्य सदा ही मेरा,

नाविक सबको पार उतारे।


बस एक दुआ मेरी मानो,

मेरा दामन ना हो मैला

ये खयाल रखना।


विनती है मां की पूतों से,

इस विनती की लाज रखना

मातृ सुरूपा मैं नदी हूं।


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