मैं कविता
मैं कविता
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मैं हूँ कविता,
है मेरी अपनी पहचान,
शब्द,भाव ,प्रेरणा से,
निखरती मेरी शान।
कभी डूबती प्रेम रस में,
कभी टूटी आंधियो से,
ले संकल्प फिर से,
गढ़ बन गयी एक कविता,
सजने खुद आत्मबल से,
ले प्रेरणा अंतस से,
बढ़ चली शूल पथ पर,
रच देने को ब्रह्मांड सारा,
तोड़ने को अभिमान सारा,
दिखाती अंतस यात्रा का पथ,
सजाने को हर शूल पथ,
निखारने को पुष्प सारा,
उदासियों में भी प्यार सारा,
बस गढ़ लेती हो खुद को,
फिर से एक कविता में।