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प्रवीन शर्मा

Abstract Others

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प्रवीन शर्मा

Abstract Others

मैं खुद बच्चा हो जाता हूं

मैं खुद बच्चा हो जाता हूं

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कभी झिलमिल कभी हिलमिल

वो मेरे पास आती है

मेरी आवाज सुनकर ही

खिलौने भूल जाती है

फिर मैं सब भूल जाता हूं

वो जब बाहों में आती है

प्यार के मोती गिरते है

कहीं पायल छनकाती है

मेरा मन फुदक उठता है

वो जब जब साथ चलती है

मां के पल्लू से छुपकर

वो इतना मचलती है

किलकारी से अपनी

दर्द मेरे डराती है

सिरहाने बैठकर मेरे

मुझे लोरी सुनाती है

मेरे सोने से पहले ही

थक कर सो जाती है

मेरी गुड़िया है गुड़ जैसी

जितना घोलता हूँ जिंदगी मीठी हो जाती है

शाम को ऑल इंडिया रेडियो छुटकी जो सुनता हूँ

खबर कोई मेरे घर की, कहाँ फिर छूट पाती है

मैं खुद बच्चा हो जाता हूं

जब वो पापा बुलाती है.


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