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Poonam Poornashri

Tragedy

5.0  

Poonam Poornashri

Tragedy

मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ

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मैं कौन हूँ ?

क्या दरवाजे पर लगी एक घंटी,

बजा देता है जिसे,

कोई मनचला कभी भी

आते-जाते।


क्या मैं हूँ

बहती हुई एक नदी,

छूकर मेरा शीतल सा जल,

उतारने लगते हैं लोग,

अपने ओढ़े हुये तमाम लबादों को।


याकि दीवार पर चिपकी हुई

किसी पोस्टर सी मैं,

फाड़कर उतारकर मुझे,

एक नया साया हो जाता है

काबिज़ मेरे वजूद पर।


अभी तो ऐश ट्रे में पड़ी

अधजली सिगरेट की तरह,

बुझ गई हूँ मैं,

फिर से सुलगने लगूँगी

क्या आकर किसी के लबों के करीब !


पर नहीं !

कुछ और भी बुरा बदा है

मेरी किस्मत में,

उड़ा कर धुँआ

अपने मुँह से कश ब कश,


वो फेंक देगा

सड़क पर और फिर,

मसली जाऊँगी मैं

जूते की नोंक से !


क्या मैं घर में सजे सोफे की तरह हूँ,

जो बदलते रहते कोने चार मेरे ?

इंतज़ार है जाऊँगी

जब में कबाड़ख़ाने में,


ये खोखला सा जिस्म

वो रीती सी साँसें लेकर,

तब ओ मेरे रहनुमाओ !

दूर होती जाएगी

सुन नहीं सकूँगी मैं

टन - टन ज़िंदगी की !

मैं कौन हूँ........।।


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