फूल की पुकार
फूल की पुकार
एक बार एक वाकया ऐसा हुआ ,
चला जा रहा था एक इंसान कुछ सोचता हुआ
अचानक ही एक दर्द भरी आवाज़ पीछे से आई
उसने अपनी नजर तब पीछे घुमाई ।
दे्खा कि एक फूल था टूटा हुआ
कहना कुछ चाहता था मगर था सहमा हुआ
इंसान ने कहा कि बतलाओ तुम हो कौन
चाहते हो कहना कुछ अगर, अब तक रहे क्यों मौन।
फूल बोला कहता हूँ आज मैं तुमसे
मेरी ही तरह ये बच्चे मासूम से
गरीबी अशिक्षा के शिकार ये पुष्प
खा रही इनको इन्हीं के पेट की भूख।
बाल विवाह की शिकार ये बच्चियाँ
जो हैं अभी अधखिली-सी कलियाँ
चाहता हूँ डाल से न तोड़े कोई इनको
वरना और दर्द होगा मेरे घावों में मुझको।
सोचो तो बढ़ती हुई आबादी का बोझ ये क्यों उठायें?
इससे तो अच्छा ये संसार में उतने ही आयें,
ताकि सीमित साधनों में भी खिलखिलायें,
न कि मेरी तरह कराहें मुरझायें |
न कि मेरी तरह कराहें मुरझायें।