मैं जब
मैं जब


मैं जब भी ख़ुद
से ख़ुद पूछता हूँ,
तुम ही तुम याद
मुझे आ जाते हो।
जब भी कहीं
बाहर निकलता हूँ,
कुछ सवाल मेरे
सामने खड़े हो जाते हैं।
तुम्हें पाने कि चाह हद
से ज़्यादा है।।
तुमसे खफ़ा हो गई
मंजिल मेरी है।
मेरे ख़्वाब भी गहरे
होते जा रहें हैं।
ख़्वाहिश इतनी है मेरी
तुमसे बस मान जाओ।
वो गुजरे पल तुम्हारे हैं,
वो सहमा हुआ कल
हमारा है।
तम्मना आरज़ू से इक़
गुज़ारिश है।
अब तुम भी मान
जाओ इतनी सी
ख़्वाहिश है।