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Arpit Verma

Tragedy

2.5  

Arpit Verma

Tragedy

मैं हूँ नारी !

मैं हूँ नारी !

1 min
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माँ की कोख से जनना था ,

बनना था मुझे सबकी प्यारी |

क्या ख़ता हुई थी मुझसे ,

जो माना सबने मुझे एक उधारी |

मार कर फैंक दिया कूड़े के उन ढ़ेरो पर ,

पूछती हूँ खुद से अक्सर क्या मैं हूँ एक नारी ||


बाप के कंधो पर खेलना था मुझे ,

छूनी थी उंचाइयां इस जग की सारी |

भाई की रक्षा का कवच पहन ,

लड़ना था इस बार दुनिया से सारी |

मार ही देते तो बेहतर होता उस रात ,

अब मरती हूँ रोज़ सोचकर ,


जब भाई - बाप ने छुई थी मेरी साडी |

पूछती हूँ खुद से अक्सर क्या मैं हूँ एक नारी ||


खता नहीं इसकी ये तो बेबस है बेचारी ,

तड़पेगी - रोएगी, फिर से लौट आएगी एक बारी |

खिलौना है, खेलने दो इससे सबको

मज़ा खत्म होने पर चढ़ा दो इस पर भी गाडी |

पूछती हूँ खुद से अक्सर क्या मैं हूँ एक नारी ||


अजीब ही अंदाज़ है इस ज़माने का दोस्तों ,

अपनी माँ - बहने अपनी , बाकी भाड़ में जाये सारी |

पूछती हूँ खुद से अक्सर क्या मैं हूँ एक नारी ||


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