मैं हूँ नारी !
मैं हूँ नारी !
माँ की कोख से जनना था ,
बनना था मुझे सबकी प्यारी |
क्या ख़ता हुई थी मुझसे ,
जो माना सबने मुझे एक उधारी |
मार कर फैंक दिया कूड़े के उन ढ़ेरो पर ,
पूछती हूँ खुद से अक्सर क्या मैं हूँ एक नारी ||
बाप के कंधो पर खेलना था मुझे ,
छूनी थी उंचाइयां इस जग की सारी |
भाई की रक्षा का कवच पहन ,
लड़ना था इस बार दुनिया से सारी |
मार ही देते तो बेहतर होता उस रात ,
अब मरती हूँ रोज़ सोचकर ,
जब भाई - बाप ने छुई थी मेरी साडी |
पूछती हूँ खुद से अक्सर क्या मैं हूँ एक नारी ||
खता नहीं इसकी ये तो बेबस है बेचारी ,
तड़पेगी - रोएगी, फिर से लौट आएगी एक बारी |
खिलौना है, खेलने दो इससे सबको
मज़ा खत्म होने पर चढ़ा दो इस पर भी गाडी |
पूछती हूँ खुद से अक्सर क्या मैं हूँ एक नारी ||
अजीब ही अंदाज़ है इस ज़माने का दोस्तों ,
अपनी माँ - बहने अपनी , बाकी भाड़ में जाये सारी |
पूछती हूँ खुद से अक्सर क्या मैं हूँ एक नारी ||