" मैं हिन्दी भाषा हूँ "
" मैं हिन्दी भाषा हूँ "


श्रींगार अलंकारों से कर, स्वाद रसों से पाकर !
लय को बाँध छान्दो से, यति - गति से आयी हूँ।
मत बाँध मुझे शब्दों में, न किताबों में कैद कर !
वाचन में भावों से लिपटी,वो मिठास मैं लायी हूँ।
मत भूलो मुझे तुम, समझकर अनजानी भाषा !
प्राचीन संस्कृति से संस्कार मैं ही तो लायी हूँ।
भाषा ही नहीं शान हूँ, मैं ही तो पहचान हूँ !
मान ही नही अभिमान हूँ, तेरा मैं सम्मान हूँ।
ना करो अपमानित, वेदों के ज्ञान से उपजी हूँ !
हिंद के गौरव का, गुणगान बन आयी हूँ।
ऊंचे हिमालय की, मैं ही तो परिभाषा हूँ !
कल-कल बहती, गंगा की धारा हूँ।
मात्र भूमि की बिंदी, हिंद की मै हिन्दी हूँ !
हाँ राष्ट्र की आशा हूँ, मैं हिन्दी भाषा हूँ।