मैं एकांकी हो गई
मैं एकांकी हो गई
गर तेरीआँखें नम हो जाए
साँसे तेरी फिर खो जाए
तब ये कहना मेरी रातें,
मैं कितनी और काली हो गई
तुझे तन्हाई में हैं रहना
तुझे तन्हाई में हैं रोना
सब यादें उनकी हैं बादल,
जिन्हें बीन बरसे...
बातें सब कहना...
उनकी यादों से ना कहना,
मैं कितनी और काली हो गई
बीती पहर में साजन आए थे
उसके जुल्फों को बहलाए थे
माथे पे उसकेचाँद की बिंदिया,
बड़ी जतन से वे सजाए थे...
उस सुहागन को देख ना कहना,
मैं कितनी और काली हो गई
इस बंधन की याद से कहना
साजन का उस हाथ से कहना
सिंदूर का उस माँग से कहना
मैं तेरे बिन पागल हो गई,
मैं कितनी और काली हो गई
फिर आ जाओ मेरे घर-आंगन में,
अपने पिया संग खूब खेलो होली
इतना रंग फैलाओ आंगन में,
जो रंग फिर से तारें हो जाएं
फिर सुहागन बन जाओ तुम,
तेरे माथे पे चांद की बिंदिया हो
जिससे मैं फिर चांदनी हो जाऊं,
काली रातें बन मैं ये ना कहती जाऊं,
मैं कितनी और काली हो गई
