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Supriya Devkar

Inspirational

4.2  

Supriya Devkar

Inspirational

मैं एक नारी हूँ

मैं एक नारी हूँ

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बचपन से माँ ने छुपाया 

अपने पल्लू के पीछे 

बाबा ने सिखाया जीना 

सर झुका के नीचे 


भाई करता था हरदम

रखवाली नजरों के पीछे से

बहना सिखाती रही 

जीने के ढंग अच्छे से


पर क्या बात है मुझ में 

मैं क्यूं नहीं आजाद

इतनी पाबंंदीयो से 

घिरा है मेरा ताज 


क्यूं हमेशा मुझको 

बनना पड़ता है सीता 

अग्नि-परीक्षा पार करके 

मुझे क्या है मिलता


चरित्र किसका है बेदाग यहाँ 

हमें भी तो बताओ 

हर नजरकैद नारी को 

जरा कैद से हटाओ 


मुझे हक हैं जीने का 

आसमान को छुने का

अपनी ताकद आजमाकर

हर मंजर को पाने का


मैं एक नारी हूँ 

मुझे गर्व है खुद पर

हर कदम रखती हूँ

अपने बलबूते पर।


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