मैं डरती हूँ........
मैं डरती हूँ........
मैं कहने से डरती हूं
घुट घुट के मरती हूं
ऐ खुदा तूने दी ऐसी जिंदगी
जिसे मर मर के जीती हूं l
तूने दुनियां बनायीं मेरे लिए
पर अपना अस्तित्व ढूढती हूं l
मैं कहने से डरती हूं l
हाँ हक़ बहुत दिए हैँ मुझे,
पर मेरे सारे हकों को छीनकर l
जब पैदा हुई तो शोक हुआ,
बेटी है साहब बेटी
इस बात का प्रलाप हुआ l
बड़ी हुई तो मज़बूरी बनी
हाथों को पीले करने का ढोंग हुआ l
ये लड़की नहीं गाये है
ऐसे शब्दों का गान सुना l
बो सच ही तो कह गए चचा,
एक खूटे से खोल दिया
और दूजे में बाँध दिया l
फिर बड़े प्यार से बोले
ये है हमारी रानी बिटिया l
अब बस इतना बता मुझे
जिसने जैसे चाहा
वैसे जीवन को ढाला
मैंने क्या क्या सहा,
ये कब किसने जाना l
अब विनती बस खुदा से
इतनी सी करती हूं
बेटियां मत भेज,
मैं बेटी होकर डरती हूं
मैं बेटी होकर डरती हूं।
