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Rajiv Jiya Kumar

Abstract

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Rajiv Jiya Kumar

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मैं चाँद लाया

मैं चाँद लाया

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मैं इक चाँद ढूँढ लाया

अपने अजीज आसमां के लिए,

नजाकत से बगिया सजाई अपनी

अपने परवाने की शमाां के लिए,

मैं इक चाँद ढूँढ लाया।।

अनेक अन्जाने परखे

सीमित तमन्ना के कांटे पर,

फिर इन अगणित 

तारों के झुंड झुरमुट से

चाँद अपना समेेट लाया

ऑंगन घर जगमगाने को,

मैं इक चाँद ढूँढ लाया।।

मेरे ईश बस अब

इक यही तमन्ना 

खिलखिलाती जमात रहे

जो मैने सजाए बसाए,

चाँद मेरा उसे दमका दे,

तीन चार पहले से चमकते है

चार जमा कुल आठ लगा दे,

मैं इक चाँद ढूँढ लाया।

        


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