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Drsonia gupta

Abstract

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Drsonia gupta

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मैं भारत की जमीं से हूँ,

मैं भारत की जमीं से हूँ,

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मैं भारत की जमीं से हूँ,

मुझे तो नाज़ है इसका,

तिरंगा वो लहरता सा

बना सरताज है इसका !


न जाने धर्म हैं कितने,

न जाने ग्रन्थ हैं कितने,

मिलें भाषाएँ कितनी ही,

न जाने वेश हैं कितने, 

मगर फिर भी रहें सब एक,

ये ही राज़ है इसका !

मैं भारत की..


मिलें हैं धाम कितने हीं,

बहें नदियाँ यहाँ पावन,

कहीं सहरा दहकता सा,

कहीं खिलता हुआ मधुबन,

कहाता ‘सोन चिड़िया’ ये,

अलग अंदाज़ है इसका

मैं भारत की..


यहाँ के वीर रण में जा,

कटा देते हैं सिर अपना,

सदा फलता रहे ये देश,

देखें बस यही सपना,

न पूछो आदमी हर

इक लगे जांबाज़ है इसका !

मैं भारत की...


शहीदों की अभी भी सब

यहाँ जयकार करते हैं,

बड़े छोटे सभी इक दूसरे से

प्यार करते हैं, 


मुहब्बत गीत है इसका,

इबादत साज है इसका !

मैं भारत की...


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