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Neetu Tyagi

Abstract

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Neetu Tyagi

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मैं और समय

मैं और समय

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मैं लड़ बैठी समय से

तू क्यों व्यर्थ बीत गया

तू वही तो था

जब देखे थे सपने


तूने भी तो साथ दिया था

उन्हें सजाने में संवारने में

बेपरवाह क्यों हुए फिर उन्हें

मंज़िल तक पहुंचाने में


समय भी चुप ना रहा

मुझे बहलाने में

क्यों छोड़ दिया तुमने

सपनों को सपनों में !


कह लेते कुछ अपनों में

समझाती कुछ मन को मन में

मैं कल भी था रहूँगा कल भी

कर हिम्मत और थोड़ा चल भी


पा लेगी मंज़िल तू भी

बस एक प्रयास बाकी है

जी भर जीने को एक

साथ काफी है


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