मैं और मेरा समाज
मैं और मेरा समाज
मैं और मेरे समाज का
आज बताऊँगा हाल,
साबित करूंगा समाज
हम से हम समाज से नहीं
आज हर समाज का है यही हाल,
हम समाज को खिलाते-पिलाते हैं
तब तो आपका बहुत ही मान-सम्मान,
करी जरा सी भी चूक तो हो
आपकी थू-थू रुपया ,
पैसे दो चन्दे बड़-चढ़ कर
पलको पे बिठाएंगे आपको,
आप क्या करते हो ?
आप क्या हो वह नहीं देखा जाता?
आपका दिया दानरूपी चन्दा इनको दिखता है,
वह आपके दुख में दुख व्यक्त नहीं करता है
पर.....,
आपके सुख में शरीक जरूर होता है,
कोई जन्म लेता है या कोई मरता है
ये अपने व्यक्तिगत मामले है,
परन्तु......!
प्रमाणिक समाज करता है,
इस संरचना में अपनी
समाज का सबसे बड़ा जटिल,
और.....!
निर्वहन में सबसे क्रूर समाज का है!!