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Kanchan Hitesh jain

Abstract

5.0  

Kanchan Hitesh jain

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मै नदी हूँ, जीवनदायिनी हूँ

मै नदी हूँ, जीवनदायिनी हूँ

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हाँ मैं नदी हूँ, निरंतर बहती रहती हूँ

सरिता, क्षीप्रा, प्रवाहिनी, नाम मेरे है कई

सर सर चलती हूँ, इसिलिए सरिता कहलाई

तेज गति से बहनें के कारण, क्षिप्रा कहलाती हूँ।


सतत प्रवाह करने के कारण प्रवाहिनी कहलाई

खेत खलिहान लहराते मुझसे, मुसाफिरों की प्यास बुझाती हूँ

इसिलिए तो जीवनदायिनी, अमृतवाहिनी कहलाती हूँ

हाँ मैं नदी हूँ, प्रकृति की अनमोल देन हूँ।


आसान मत समझना तुम मेरा सफर,

मंजिल को पाने की चाह में, बडी मुश्किलों को झेला है

पहाड़ों से टकराई हूँ, पत्थरों से चोट खाई हूँ

पेड़ पौधों और जंगलों को पार कर, हिमगिरि से आई हूँ।


हाँ मैं नदी हूँ, यही संदेशा देती हूं

गर मंजिल को पाना है तो, बाधाओं से टकराना है

रुकना नही, थमना नही, आगे बढते जाना है

लेकिन स्वार्थी मानव तूने, हाल मेरा क्या कर दिया।

कूड़े करकट और पलास्टिक से, जीना दूभर कर दिया है

जीवन देनेवाली को ही तूने प्रदूषित कर दिया

सांस लेना भी मेरा अब तो मुश्किल कर दिया

एक चेतावनी देती हूँ, तू सून ले जरा।


रुक जा, थम, जा, अब भी वक्त है संभल जा जरा

सूख रहे है नदी नाले, जनजीवन त्राहि त्राहि हो रहा

अपने विनाश का तू खुद ही जिम्मेदार बन रहा

हाँ मैं नदी हूँ, तुमसे विनती करती हूँ।


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