मायूस इश्क का
मायूस इश्क का
इन दिनों
परेशां लोग पूछते है
की कैसे सर्द मुश्किलों के
मौसम में इतनी नर्म और गर्माहट भरी
बातें लिख पाती हूँ ।
चन्द प्रेम में
डूबे लोग जानना चाहते है
मेरी वो रूमानी सी जगहें
जहां बैठ मैं काढ़ती हूँ
मखमली नाजुक लफ़्ज
उम्मीदों के दामन में
और भर देती हूँ उनमे
प्यार बेशुमार।
वहीं आलिम लोग
छाप कर मेरी हथेलियां
ढूंढते है, तेरा नाम उसमें
कि शायद छिपा कर
रेखाओं में रखा हो मैंने
तुमको सबसे।
मासूम
खामोश लोग
झांकते है मेरी आँखों में
कि कौन हो तुम
इतने शाइस्ता से
जो लिखती हूँ तुम्हे
मैं इस कदर
इत्मीनान से
कह भी दूं तो
कौन मानेगा
की तुम मायूस हो
मेरे
इश्क़ में।