माटी
माटी
इस माटी की सौंधी सुगंध,
बसी है मेरे ज़हन में,
जिस माटी ने दिए ऐसे वीर,
जिन्होंने हंसते- हंसते मौत को,
गले लगा लिया, जिसने बिना,
हिंसा के हमें आज़ादी दिला दी,
उन संत को सबने महापिता,
का दर्जा दिया,
माटी की सौंधी सुगंध,
से महके है ये हमारा चमन,
हमनें बचपन में सीखे हैं,
ये मीठे बोल, "बिन खडग्,
बिना ढ़ाल साबरमती के लाल
तूने हमें दिला दी हमें आज़ादी
आज हम अपने बच्चों को,
माटी के लालों की क्या गाथा,
सुनाएं
माटी की सौंधी सुगंध महसूस
नहीं होती, माटी की सुगंध
ज़हरीली हो गई है....।
दिल रोता है, माटी की सौंधी सुगंध !