माटी का तन
माटी का तन
ये माटी का तन है,
काठी से जल जाएगा।
ये माटी से आया है,
माटी में मिल जाएगा।।
तन के सौंदर्य का,
भ्रम लिए फिरते हैं।
मन के मैल का,
मीठी वाणी लिए फिरते हैं।।
ख़ुबसूरत हुस्न का,
जाल बुना करते हैं।
दिल जीत कर,
दिल चीर दिया करते हैं।।
ये माटी का तन...।।
तन तो माटी रे,
माटी को दीया लोे मान।
मन तो बाती रे,
बाती को जीवन दीया लो माना।।
तन मन का साथ चलना,
होता प्रिये दीया का जलाना।।
तन मन का विभेद चलना,
होता प्रिये जीवन दीया का बुझना।।
ये माटी का तन..।।
तन मैं भी नहीं,
तन तू भी नहीं।
मन मैं भी नहीं,
मन तू भी नहीं।।
तन मन हो हम,
तुम रूठ न जाना रे।
लिखूंगा तुम्हें बहलाने को,
तुम दीया मैं बाती रे।।
ये माटी का तन..।।
तन मन दो छंद,
एक तन-मन हो जाए।
हम तुम दो जिस्म,
एक दीप हो जाएं।।
दीया बाती की कद्र करना,
तन मन के अस्तित्व बचाने को।
क़लम थाम रखा है,
बुराई को औकात दिखाने को।।
ये माटी का तन है,
काठी से जल जाएगा।
ये माटी से आया है,
माटी में मिल जाएगा।।