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Satya Narayan Kumar

Inspirational

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Satya Narayan Kumar

Inspirational

जल, प्रकृति और पर्यावरण

जल, प्रकृति और पर्यावरण

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चलो एक कविता तुम्हें,

आज़ हम सुनाते हैं।

जल, प्रकृति और पर्यावरण को,

गाकर हम सुनाते हैं।।


छायी धरा में,

तबाही घनघोर ।

शहरीकरण के घने जंगल में,

रह रहें हम आदमखोर।।


मकान बने,

दुकान बने।

सड़क बने,

चौराहे बने।।


बन रहे कोरिडोर चारों ओर।

शहरीकरण की चमक-दमक चारों ओर।।

पेड़ काटे, दूषित किया नदी नालों का पानी।

हर गली कुचे में भरा है पानी।।


पेड़ बचें न पर्वत।

नदियां बचें न झरनें।।


चलो इंसानों की गंदगी से,

हम सब इससे बचाते हैं।

चलो अपनी घरा को,

स्वर्ग सी सुंदर हम बनाते हैं।।


चलो अपने घर को,

पेड़-पौधों से सजाते हैं।

चलो अपने जीवन को,

प्रकृति की गोद में लेकर जाते हैं।।


चलो प्रकृति से मित्रता को,

एक छोटी सी प्रयास हम लगाते हैं।

चलो अपने चेतना को,

आज़ हम जगाते हैं।।


चलो अपने संकल्प को,

आज़ जन जन तक पहुंचाते हैं।

आने वाली नयी पीढ़ी के लिए,

जीवन निर्माण की एक नयी बीज़ लगाते हैं।।


चलो इंसानों की गंदगी..।।


प्रकृति की परिदृश्य के लिए,

नयी अल्लख हम जगाते हैं।

प्रकृति, पर्यावरण और जीवन के लिए,

एक आधार हम बताते हैं।।


सत्या कहते है,

जल है जीवन का आधार।

एक तिहाई है धरा,

शेष में जल है भरा।।


साठ प्रतिशत जल है,

हमारे ‌शरीर पर।

अस्सी प्रतिशत जल है,

मस्तिष्क में भरा।।


जल में ऐसे गुण है।

हमारा शरीर है जिसमें खड़ा।।


चलो इंसानों की गंदगी..।।


कुपों, तालाबों, नदियों और झरनों में,

जीवन बनके बहता है।

डगर डगर बहकर सागर में मिलता है।।


चलो अपने दुनिया को,

एक सुंदर संसार बनाते हैं।


नदी बचाते हैं,

पर्वत बचाते हैं।

पशु-पक्षियों के लिए,

नयी संसार बनाते हैं।।


चलो इंसानों की गंदगी..।।


कर्णधार मैं तुम्हें बनाता हूं।

जल, जंगल और जमीन,

बचाने की क्रांति में चलाता हूं।।


जल, प्रकृति और पर्यावरण से,

जिसने की हो शत्रुता।।

उसे मानवता की पाठ पढ़ता हूं।।



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